Independence Day





कल भारतीय स्वतंत्रता दिवस है। मुझे “जन-गण-मन” की धुन इतनी पसंद है कि इसे मैं यूं ही अक्सर गुनगुनाता रहता हूँ –लेकिन स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस के आस-पास माहौल के कारण ऐसा अधिक होता है।आज मैंने फ़ेसबुक पर एक संदेश पोस्ट करके कहा कि राष्ट्रगान का सही उच्चारण हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है। मेरी इस पोस्ट पर अच्छी चर्चा हुई और इससे कई बातें निकल कर सामने आईं –सो मैंने सोचा कि इन बातों को एक लेख की शक्ल में लिख देता हूँ ताकि इन्हें बाद में भी पढ़ा जा सके।
क्या आप भारत के राष्ट्रगान को ठीक-ठीक दोहरा सकते हैं? यही सवाल अपने बच्चों व परिवार के अन्य सदस्यों से भी पूछिए। मैंने पाया है कि अधिकांश लोग राष्ट्रगान को गाते समय बहुत-सी ग़लतियाँ करते हैं। जैसे कि:
  • “बंग” को “बंगा” कहेंगे
  • “तरंग” को “तरंगा” या “तिरंगा”
  • “तव” को “तब”
  • “मागे” को “मांगे”
  • “सिंध” को “सिंधु”
  • “द्रविड़” को “द्राविड़”
  • “आशिष” को “आशीष”
  • “उत्कल” और “उच्छल” को तो ना जाने क्या-क्या कहा जाता है।
हमें चाहिए कि हम अपने बच्चों, मित्रों रिश्तेदारों को सही उच्चारण के बारे में समझाएँ और उनके उच्चारण को ठीक करने में सहायता करें।
इस चर्चा में एक रोचक प्रश्न यह उठा कि इस गान में सही शब्द “सिंध” है या “सिंधु”? सिंध एक प्रांत है (जो अब पाकिस्तान में है) और सिंधु एक नदी का नाम है। अंग्रेज़ी विकीपीडिया के मुताबिक टैगोर ने “सिंधु” शब्द का प्रयोग किया है; लेकिन अंग्रेज़ी विकीपीडिया में ग़लत सूचना है यह मुझे तब पता लगा जब मुझे स्वयं टैगोर की हस्तलिपि में राष्ट्रगान का अंग्रेज़ी अनुवाद मिला। इस अनुवाद में टैगोर ने “सिंध” शब्द का प्रयोग किया है। और “सिंध” का प्रयोग अधिक तार्किक लगता भी है क्योंकि राष्ट्रगान की इस पंक्ति में बाकी सारे शब्द प्रांतों के नाम ही हैं (पंजाब, गुजरात, मराठा)
रबीन्द्रनाथ टैगोर के हाथ का लिखा राष्ट्र गान का अंग्रेज़ी अनुवाद
कुछ समय पहले यह बात उठी थी कि राष्ट्रगान से “सिंध” शब्द को निकाल दिया जाना चाहिए क्योंकि सिंध अब पाकिस्तान का एक सूबा है और भारत का हिस्सा नहीं है। इस बारे में न्यायालय में एक याचिका भी दायर की गई थी। न्यायालय ने याचिक को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि राष्ट्रगान भौगोलिक व्याख्या करने का माध्यम नहीं होता। साथ ही किसी कवि की रचना के साथ छेड़छाड़ भी सर्वथा गलत है।
कई लोग यह भी मानते हैं कि हमारा राष्ट्रगान दरअसल किंग जॉर्ज पंचम का गुणगान है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस कविता की रचना दिसम्बर 1911 में हुई –ठीक उसी समय जब कि जॉर्ज पंचम गद्दी पर बैठे थे। इस बारे में सत्य क्या है यह तो कविता के रचनाकार टैगोर ही बता सकते थे; इसलिए अब हमें चाहिए कि हम अपने राष्ट्रगान पर टीका-टिप्पणी करने की बजाए उसका आदर करें और इस तरह के बेवजह विवाद पैदा ना करें।
हमारे राष्ट्रगान के बारे में कुछ तथ्य:
  • हमारे राष्ट्रगान “जन गण मन” के रचयिता रबीन्द्रनाथ टैगोर हैं। टैगोर की कविता में कुल 5 पद हैं। कविता का केवल पहला पद राष्ट्रगान के रूप में प्रयोग किया जाता है
  • इसे सबसे पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 27 दिसम्बर 1911 को गाया गया था
  • “जन गण मन” को आधिकारिक तौर पर भारत का राष्ट्र गान 24 जनवरी 1950 को घोषित किया गया
  • राष्ट्रगान की धुन भी स्वयं टैगोर ने ही मार्गरेट कसिंस के सहयोग से रची थी। टैगोर रचित मूल धुन को ही आज तक इस्तेमाल किया जाता है। इस धुन की रचना टैगोर ने आन्ध्रप्रदेश के मदनापल्ली शहर में की थी
  • राष्ट्रगान को गाने की अवधि 52 सेकेंड्स है; अर्थात राष्ट्रगान को यदि मूल धुन के साथ ठीक तरीके से गाया जाए तो यह 52 सेकेंड्स में समाप्त हो जाता है।
  • मूल-रूप से इस कविता को टैगोर ने बंगाली भाषा में दिसम्बर 1911 में लिखा था। कविता की भाषा शैली काफ़ी अधिक संस्कृत पर आधारित है
  • राष्ट्रगान के रचयिता टैगोर की एक अन्य कविता “आमार शोनार बांग्ला” बांग्लादेश का राष्ट्र गान है। दो देशों का राष्ट्रगान लिखने वाले टैगोर विश्व में एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं
  • किसी फ़िल्म इत्यादि में यदि राष्ट्रगान बजता है तो दर्शकों को “सावधान मुद्रा” में खड़े होने की आवश्यकता नहीं है (ऐसा भारत सरकार द्वारा जारी निर्देशों में लिखा है)। इसके अलावा बाकि सभी परिस्थितियों में “सावधान मुद्रा” में खड़े होकर राष्ट्रगान गाना चाहिए
  • भारत के प्रधानमंत्री के भाषण से पहले आमतौर पर राष्ट्रगान नहीं बजाया जाता। राष्ट्रपति व राज्यपालों के भाषण से पहले राष्ट्रगान बजाया जाता है
  • राष्ट्रगान और राष्ट्रीय गीत में फ़र्क है। हमारा राष्ट्रीय गीत बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय रचित “वंदे मातरम” है

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